यहाँ भगवान शंकर को समर्पित रुद्राभिषेक पूजा के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी जा रही है, जिसमें पूजा का महत्व, विधि, लाभ आदि सभी पहलुओं को सम्मिलित किया गया है।
रुद्राभिषेक पूजा: एक परिचय
रुद्राभिषेक पूजा भगवान शिव को समर्पित अत्यंत प्रभावशाली और पूज्यनीय धार्मिक अनुष्ठान है। ‘रुद्र’ भगवान शिव का उग्र रूप है और ‘अभिषेक’ का अर्थ होता है स्नान कराना या पवित्र जल/द्रव्यों से अभिषेक करना।
यह पूजा विशेष रूप से श्रावण मास, महाशिवरात्रि, सावन सोमवार, अथवा किसी विशेष शुभ मुहूर्त में की जाती है।
रुद्राभिषेक पूजा की विधि:
स्थान व तैयारी:
साफ-सुथरे और शांत वातावरण में शिवलिंग की स्थापना करें।
शिवलिंग का अभिषेक:
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से शिवलिंग का स्नान कराएं।
इसके बाद गंगा जल, जल, शहद, दही, घी, चीनी, बेलपत्र, चंदन, फूल, भस्म, धतूरा आदि समर्पित करें।
मंत्र जाप:
सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप।
साथ ही, रुद्राष्टाध्यायी या रुद्रम् (श्री रुद्रम् चमकं पाठ) का पाठ करें।
आरती और प्रार्थना:
दीप जलाकर शिवजी की आरती करें और अपने मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें ।
रुद्राभिषेक का धार्मिक महत्व:
यह पूजा वेदों में वर्णित अत्यंत शक्तिशाली अनुष्ठानों में से एक है।
रुद्राभिषेक के माध्यम से भक्त भगवान शिव की कृपा प्राप्त करते हैं जो समस्त प्रकार के दुख, पाप और संकटों का नाश करते हैं।
यह अनुष्ठान पारलौकिक शांति, मुक्ति और आध्यात्मिक उत्थान का साधन है।
रुद्राभिषेक के लाभ:
सभी प्रकार की बाधाओं और कष्टों का निवारण होता है।
आर्थिक समृद्धि, व्यवसाय में वृद्धि और नौकरी में उन्नति प्राप्त होती है।
वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौहार्द और सुख-शांति बनी रहती है।
दुष्ट ग्रहों और कालसर्प दोष जैसी समस्याओं से राहत मिलती है
मानसिक शांति, चिंता से मुक्ति और आत्मिक बल मिलता है।
परिवार में एकता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
बीमारियों और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों में लाभ होता है।
विशेष बातें:
सोमवार का दिन भगवान शिव के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
विशेष अवसरों पर जैसे महाशिवरात्रि, श्रावण सोमवार, कार्तिक मास, या ग्रह दोष निवारण हेतु रुद्राभिषेक कराया जाता है।
पंडित जी द्वारा वैदिक मंत्रों के साथ कराई गई यह पूजा अधिक प्रभावशाली मानी जाती है।
पौराणिक संदर्भ:
रुद्राभिषेक का उल्लेख यजुर्वेद और पुराणों में मिलता है।
ऐसा कहा जाता है कि रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने के प्रयास के बाद भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक किया था।
देवताओं ने असुरों के भय से शिवजी का रुद्राभिषेक कर उनकी सहायता प्राप्त की थी।
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